धरती माँ की डायरी
काव्यात्मक शुरुआत: युगों से मैं धरती माँ, अपने बच्चों को पालती आई हूँ, हर मौसम में, हर काल में, जीवन का संतुलन बनाती आई हूँ। आज मेरी आँखों में आँसू हैं, मन में व्यथा है अपार, देख रही हूँ अपने बच्चों को, करते मुझे बेकार।
पर्यावरण परिवर्तन पर टिप्पणी: मेरे प्रिय बच्चों, देखो कैसे बदल रहा है सब कुछ। मेरी नदियाँ गर्म हो रही हैं, मछलियाँ मर रही हैं। अल्बर्टा की ट्राउट मछलियाँ अपना घर खो रही हैं। दिल्ली की हवा में जहर घुल गया है, मेरे बच्चे साँस नहीं ले पा रहे हैं। खाद्य उत्पादन में एक-तिहाई प्रदूषण हो रहा है, फिर भी भोजन बर्बाद किया जा रहा है।
जीवन पर प्रभाव: मेरा संतुलन बिगड़ रहा है। तूफान पहले से ज्यादा विनाशकारी हो गए हैं, ह्यूस्टन में बाढ़ आ रही है। चीन में धरती में छेद (सिंकहोल) बन रहे हैं, जहाँ प्राचीन वन छिपे हैं। गरीब देश मदद माँग रहे हैं, लेकिन धनी देश पर्याप्त सहायता नहीं कर रहे।
आशा और चेतावनी के साथ समापन: मेरे प्यारे बच्चों, अभी भी समय है सुधरने का, सीखो प्रकृति से, समझो इसे अपना घर बनाने का। या तो बदलो अपनी जीवनशैली, करो पर्यावरण का ध्यान, वरना आने वाला कल होगा, सिर्फ पछतावे का सामान।
याद रखो, मैं धरती माँ, तुम्हारे बिना अधूरी हूँ, लेकिन तुम मेरे बिना, कहीं के नहीं रहोगे। सोचो, समझो, और बदलो, क्योंकि यही एक रास्ता है बचने का।
~ धरती माँ